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Thursday, June 12, 2014

फूटबॉल है भइये! फूटबाल, ब्राज़ील और क्रोएसिया लड़ रहे है,लेकिन मैच सुरु होने से पहले पिटबाल था नज़ारा तो अद्भुत था ब्राज़ील की खूबसूरती को मैदान में चित्रांकन, भाई वाह! अमेजिन, ओसम,
काका- कहा हो रहा है बबुआ ई! हमने बताया ब्राज़ील, फूटबाल ह!! बहुत खेले रहे हम भी अपनी जवानी में फूटबाल, फूटबाल आगे आगे और हम पीछे पीछे, लेकिन एक बात बताओ ये टीवी में ब्रसिल काहे बोल रहे है उ ता ब्राज़ील है न हो, चाचा नहीं समझोगे, काहे मतलब हमको पता है फूटबाल है, हम खेले है, चाचा उ एक महीने के लिए ब्राज़ील ब्रसील हो गया है काहे की हम अंग्रेजी बोलेगे जबतक ई फूटबाल ख़तम नहीं होता है, अच्छा ई बताओ अप्पन देश काहे नहीं है इसमें, चाचा पाहिले हमको ई बताओ ई सवाल तू आज कहे पूछत हो?, का मतलब आज, मैच है तो पूछ रहे है, हा एजेक्ट्ली अगर ई बात तोहे पाहिले से याद रहता कि अप्पन देश को भी फूटबाल में हिस्सा लेना है तो अपना देश भी होता !!
काका गंभीर मुद्रा में, सही बेटा हमका इतना क्रिकेट दिखाए रहिस है सब कि फूटबाल ता हम भुलाई गये है, लेकिन ये बेटा अपना देश रहता तो मजा ही कुछ और होता!!

Wednesday, June 11, 2014

नहीं बदलने के आसार...

एक कहावत है "चार कोस पर पानी बदले, आठ कोस पर बानी". पर इन्हें कौन समझाए की समस्याए नहीं बदलती, वही महंगाई, बलत्कार, हत्याए हर स्थान पर समान है. वो नहीं बदलती, चाहे उ.प्र हो, बिहार हो या हो देश की राजधानी, और उसपर जबरन बयानबाजी. हालाँकि सरकार कदम उठा रही है. कदम इस दिशा में कि कोई भी बयान न करे, खामोश रहे. भई वाह! आपके निर्देशों का हरसंभव पालन भी हो रहा है. बयान से याद आया खामखाह वी . के . सिंह जी परेशान हो गये. जिद पकड़ लिया है जनाब ने. अरे माना की आर्मी की अलग कोर्ट होती है, पर फैसले तो हुक्मरान ही लेते है. छोडिये जाने दिजिये, ये राजनीति को अपने रास्ते, हम अपने रस्ते......
 
(नोट :पूर्ण विराम अर्ध विराम इस गद्यांश में महत्व नहीं रखते है सुबिधानुसार प्रयोग करे )

Thursday, June 5, 2014

लोकतंत्र या भिड्तंत्र??

भीड़ का खौफ गहरा होता है, भीड़ का परिहास और व्यंग भी आन्दायक होता है, उस भेड़ वाली कहावत के मानिंद की एक भेड़ जिधर जाती है बाकि के भेड़ भी उसी रास्ते पर निकल पड़ते है. उन्हें पता नहीं होता मंजिल कहा है? है भी या नहीं? आखिर कोई एक भेड़ तो होगी जो सबसे आगे चलती है, क्या उसे पता नहीं होता है जिस रास्ते पर वो जा रही है उसमे अगले ही छण खाई है और सिर्फ उसका पतन नहीं होगा, उस पुरे भीड़... भेड़ के और कुछ एक निर्दोष भीड़ का भी. समय की गति है ये मान ले या ये भी मान सकते है की भीड़ पर नियंत्रण नहीं है, जैसे की महिलाओ के अत्याचार पर नियंत्रण नहीं है. अगर इन छोटे मुद्दों पर, जो बड़ी होती जा रही है, तो आपको राजा कहलाने का कोई हक नहीं है. अपने मुह मियां मिठू मत बनिए, सोचिये, कुछ इस तरह से कानून का इस्तेमाल कीजिये की पूरा जनमानस सोचने पर मजबूर हो जाये ,ये सारी बातें इतिहास की गवाह बनेगी जबतक सता में बिराजमान है तब तक कोई नहीं बोलेगा, पर उसके बाद भी बोलने वाले मिलते रहेंगे.

आज नहीं कल बोलेंगे, जिंदा रहे तो हम बोलेंगे !!!